आखिर क्या वजह थीं जिससे कर्नाटक मे भाजपा को मिली हार.. जानिए हार की मुख्य 5 वजहें
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आखिर क्या वजह थीं जिससे कर्नाटक मे भाजपा को मिली हार.. जानिए हार की मुख्य 5 वजहें |
इस वर्ष कर्नाटक चुनाव के बाद अन्य पांच राज्यों में चुनाव होने बाकी है जो 5 राज्य मिजोरम, राजस्थान ,छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश एवं तेलंगना है। इसके बाद अगले साल अर्थात 2024 24 में लोकसभा के चुनाव भी होने वाले हैं कुल मिलाकर अगर बात की जाए तो अगले आने वाले 2 सालों में लोकसभा के साथ-साथ 13 बड़े राज्यों के चुनाव होने बाकी है और कर्नाटक में भाजपा को मिली हार भाजपा के लिए बहुत ही चिंता का विषय है।
चुनाव के आंकड़े
आखिर क्यों हारी कर्नाटक में भाजपा सरकार
कर्नाटक मैं भाजपा की हार ने भाजपा कार्यकर्ता को चिंता में डाल दिया है क्योंकि पिछले 1 साल में यह दूसरा राज्य है जिसमें भाजपा को हार मिली है भाजपा की हार के कारण के विषय में राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो अजय कुमार सिंह ने भाजपा की हार के मुख्य पांच कारण बताएं
- आंतरिक कलह बनी सबसे बड़ी मुसीबत
भाजपा की हार के लिए यह सबसे बड़ी मुख्य वजह रही है चुनाव के दौरान ही नहीं बल्कि चुनाव से काफी पहले से भाजपा कार्यकर्ताओं में आपसी कलह की बातें सामने आ रही थी ऐसे में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण यही बताया जा रहा है।
कर्नाटक भाजपा में कई ग्रुप बने हुए थे जोकि अपनी-अपनी पावर दिखा रहे थे कर्नाटक भाजपा के इन ग्रुप का फायदा कांग्रेस सरकार को मिला जिस कारण कर्नाटक में भाजपा की हार हुई कांग्रेस भाजपा के इन गुणों से भाजपा के कार्यकर्ता भी परेशान थे।
- टिकट बँटवारा भी बनी हार की वजह
पार्टी आंतरिक बंटवारे से जूझ ही रही थी ऐसे समय मे टिकट बंटवारे के समय आने वाली दिक्कत ने भाजपा की दिक्कत बढ़ा दी। पार्टी के कई दिग्गज नेताओं का टिकट काटना भाजपा के लिए काफी महंगा साबित हुआ।
पार्टी नेताओं की बगावत ने कई सीट पर भाजपा को नुकसान पहुँचाया। 15 से ज्यादा ऐसे दिग्गज नेताओं ने चुनाव लड़ा और कई सीटो पर भाजपा को नुकसान झेलना पड़ा।
लक्ष्मण सादवी, जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं का पार्टी से अलग होना भाजपा के लिए काफी महंगा साबित हुआ।
- भ्रष्टाचार के आरोप की वजह भी हार के लिए बनी जिम्मेदार
यह एक ऐसा मुद्दा है जो पूरे चुनाव के दौरान हावी रहा। चुनाव से कुछ समय पहले ही भाजपा के एक विधायक के बेटे द्वारा रंगे हाथ घुस लेने का मुद्दा सामने आया था। जिसके कारण भाजपा विधायक को जेल भी जाना पड़ा था। इसके अलावा एक ठेकेदार ने भाजपा सरकार पर 40% कमीशन लेने का आरोप लगाते हुए फांसी लगा ली थी।
इन सभी मुद्दों का फायदा कांग्रेस सरकार ने बखूबी उठाया। कांग्रेस ने पूरे चुनाव में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। इसके कारण जनता की नजरों में भाजपा पार्टी की तस्वीर धूमिल हुई और इसका नुकसान भाजपा सरकार को झेलना पड़ा।
- दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई का भी दिखा असर
कर्नाटक चुनाव में दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई को भी भाजपा की हार की एक महवपूर्ण वजह बताई जा रही है। इस वक्त दक्षिण बनाम उत्तर की लड़ाई चल रही है भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है और मौजूदा समय में केंद्र की सत्ता में है हिंदी बनाम कन्नड़ की लड़ाई में भाजपा नेताओं ने चुप रहना ही ठीक समझा इस वजह से कांग्रेश के स्थानीय नेताओं ने इस मुद्दे को कर्नाटक में उठाया।
नंदनी दूध का मुद्दा इसका उदाहरण है। कांग्रेस ने नंदनी दूध के मुद्दे को खूब प्रचारित किया और एक तरह से यह साबित करने की कोशिश की है कि भाजपा सरकार ने उत्तर भारतीय कंपनियों को बढ़ावा दिया है जबकि दक्षिण के लोगों को किनारे कर दिया है इस बात का असर भी कर्नाटक चुनाव में देखने को मिला।
- आरक्षण का मुद्दा पड़ा भारी
कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्गों में बाट दिया है। इससे भाजपा सरकार को फायदे की उम्मीद थी लेकिन अंतिम वक्त मे कांग्रेस ने एक बड़ा पांसा फेंककर सबकुछ बदल दिया। कांग्रेस ने अपने चुनाव पत्र में आरक्षण का दायरा 50% से बढ़ाकर 75% करने का ऐलान किया है।
आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बहुत फायदा पहुँचाया है। लिंगायत वोटर्स के साथ-साथ ओबीसी और दलित वोटर्स ने कांग्रेस का पूरा साथ दिया।